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वेणु निनादक चुम्बकीय आकर्षण / कृष्णावतरण / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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मनमोहन मुरली धुनि सहसा पड़ल कानमे
श्याम किशोरक रूप अनूपहु जगल ध्यानमे
रसक लालसा उद्वेलित सहसा उफानमे
व्रजबाला प्रेमक ज्वालासँ ज्वलित प्राणमे
ध्यान एक छल वंशी तानक स्वर-संधानक
श्यामसुन्दरक रूप-गुण - यशक कथा-वितानक
प्रेम-हेमकेर मूल्य अतुल्य बोध हो जनिका
लोक-लाज व्यवहार कपर्दक तुल्यहि तनिका
रहल होस नहि, जोस भरल अछि, उचकि चली झट
साड़ी बदलब छोड़ि दौड़ि चलि पड़लि गली चट
चंचल चित अंचल ककरहु कहुँ ससरि गेल अछि
टिकुली-चमकी पड़ल कतहु से बिसरि देल अछि
आङी ककरहु बंध-रहित नहि सम्हरि रहल अछि
क्यौ ककरहु टोकेँ उन्मुख दृग गुम्हरि रहल अछि
नाकक भूषण कान चढ़ौने क्यौ बौरायलि
पायल बाँहि चढ़ाय हार कटि कसि बहरायलि
डरकस गरदनि लगा हृदय बिच झूलइ ककरो
बाजू चूड़ी जकाँ हाथमे झलकइ ककरो
एक आँखिमे काजर दोसर सहज निरंजन
केश खुजल ककरहु, अधबान्हल ककरहु कच घन
सुनि वेणुक स्वर व्रज-रमणी-गण भय उन्मादित
सुधि-बुधि बिसरि ससरि चलली धुनि जतय निनादित
लोक लाज नहि रहल समाजक रोच न रंचहु
किछु न बोध, अनुरोध न मानल संचहु-मंचहु
हाथ मथानी रहितहुँ नहि से माखन मथइछ
तबधल तव पर रोटी जरितहुँ नहि पुनि बुझइछ
डाबा हाथहु दूध दुहब क्यौ बिसरि गेल अछि
केश पकड़ितहुँ ककबा हाथक ससरि गेल अछि
अटपट कय लटपट करइत चलि देलनि घरसँ
झगड़ि पड़लि क्यौ रोक - टोक कयने निज वरसँ
क्यौ कुमारि झझकारि उठल सहकारि सखी सङ
माय-बाप मुह ताकि रहल, ई चालि केहन रङ
जे जनि रोकलि गेलि अर्गला-भरल सदनमे
ध्यान मग्न से बैसि नयन - युग मूनि गहनमे
ककरहु जेना समाधिक स्थिति हो सहजहि गहने
प्राण - विहग उड़ि चलल काय - पिंजरसँ अपने
सभक देखि गति चकित न फुरइछ की कहि रोकी
बन्धु-बान्धवहु थकित, फुरय नहि की अनुरोधी
स्वयं बनल उन्मन छथि वंशी धुनि सुनि काने
मधुमातल अछि मनहु, जगक गति आनक आने
क्यौ सजि-धजि छलि पहिनहिसँ उत्सुका प्रस्तुता
क्यौ प्रसाधिकाकेर प्रसाधनेँ अर्ध भूषिता
जे जहिना छलि तहिना सहसा प्रस्तुत भेले
लौहक - कण चुम्बक दिस सहजहिँ कर्षित भेले
सुतलि पड़लि अलसायलि अथवा काजुलि ललना
निकलि पड़लि घर-आङनसँ किछु करइत छलना
चलि नव नागरि रस-आगरि व्रजचंदक खोजहि
वन-उपवन निकुंज-वीथी कत घुमइछ ओजहि
उन्मादलि गोपीगन उन्मन हेरि रहल छथि
वनमाली वंशीधर वंशी टेरि रहल छथि
सहसा देखल कालिन्दी तट तरु वंशी वट
टेरि रहल छथि मुरली-सुर मुरलीधर नटखट
घेरि-बेढ़ि लेलनि सब एकहि बेरि पहुँचि कय
की थिक? कथिक खोज अछि? पुछलनि, अयलहुँ की लय
कहलनि, जकरहि लेल चोरि, से चोर बनाबथि
जकरहि जोरेँ जोर, कोना कमजोर बनाबथि
कूप पुछथि अछि प्यास कथक? हम रिक्त-रिक्त छी
मधु यदि कहथि बनाय बात हम तिक्त-तिक्त छी