भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वेदना में रात बीती दिन हुआ / विशाल समर्पित
Kavita Kosh से
वेदना में रात बीती दिन हुआ
आज पहला दिन तुम्हारे बिन हुआ
आज पहली बार मेरी देहरी पर
दीप कोई भी नहीं था, बस अंधेरा
उस अंधेरे में निरंतर घुल रहा था
बस तुम्हारे नाम के संग नाम मेरा
एक युग से भी बड़ा हर छिन हुआ
आज पहला दिन तुम्हारे बिन हुआ... (1)
गीत नदिया के किनारे, शांति फैली
दूर तक किंचित न कोलाहल मिला है
आज पहली बार मेरी ज़िंदगी को
यह अभोगा या अगाया पल मिला है
दुःख मृदंगो पर धिनक-ता-धिन हुआ
आज पहला दिन तुम्हारे बिन हुआ... (2)
आज पहली बार सारी रात जागी
आँसुओं ने साथ आँखों का दिया है
भर रहा हूँ आँसुओं के मोतियों से
हर ख़ुशी का कर्ज जो मैंने लिया है
पर्वतों-सा अब सुखों का ऋण हुआ
आज पहला दिन तुम्हारे बिन हुआ... (3)