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वेद का ज्ञान होने लगा / उत्कर्ष अग्निहोत्री
Kavita Kosh से
वेद का ज्ञान होने लगा,
दर्द मुस्कान होने लगा।
अवतरित जब भी कविता हुई,
इक अनुश्ठान होने लगा।
दुःख जब भी किसी का जिया,
गीत वरदान होने लगा।
दृश्टि थी वो कि संस्पर्शमणि,
रंक धनवान होने लगा।
जिसने पूँजी लुटाई नहीं,
उसका नुकसान होने लगा।
गाँव में मेरा गैरिकवसन,
मेरी पहचान होने लगा।