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वे तेरे, जीने की किस जी से... / आसी ग़ाज़ीपुरी
Kavita Kosh से
वे तेरे, जीने की किस जी से तमन्ना करते?
मर न जाते जो शबे-हिज्र तो हम क्या करते?
तूने दावाए-ख़ुदाई न किया खूब किया।
ऐ सनम! हम तेरे दीदार को तरसा करते॥
दिले-बीमार से दावा है मसीहाई का।
चश्मे-बीमार को अपने नहीं अच्छा करते॥
भला किस दिल से हम इनकारे-दर्दे-इश्क़ करें।
नहीं कुछ है तो क्यों रह-रहके दिल पर हाथ धरते?