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वे दोनों / कुमार विकल
Kavita Kosh से
(एक परिचित प्रेमी युगल के प्रति)
अच्छा हुआ
वे दोनों
मेरे जीवन से ऎसे निकल गए
जैसे दो प्रेमी
पुस्तक-मेले में आएँ
और बिना कोई क़िताब ख़रीदे
केवल सूची-पत्र इकट्ठे करके ले जाएँ ।
लेकिन मेरा यह डर है
इसी तरह वे
एक-दूसरे के जीवन से चले जाएंगें
बिना एक-दूसरे की क़िताब को पढ़े हुए
क्योंकि उनके लिए
अभी तक जीवन
मात्र एक जिस्मों का मेला है
अक्षरों
शब्दों, वाक्यों
पुस्तकों का नहीं
जिनमें लोगों के दुख-सुख रहते हैं
मनुष्य के मन की प्रेमकथा कहते हैं ।