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वे नहीं बन सके पुत्र के पिता / अंकिता जैन

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वे नहीं बन सके पुत्र के पिता
किस्मत ने डाल दी
झोली में गिनती भर पुत्रियाँ,
पुत्रियाँ जिन्हें बड़ा करने में वे ख़र्च करेंगे जीवन उतना ही
जितना करते ख़र्च, पुत्र को बड़ा करने में

पुत्रियाँ जो इस ख़र्च हुए जीवन का ना मूल चुका पाएंगी ना ब्याज
वे ब्याह दी जाएंगी कुछ और पुत्र जनने के लिए
रह जाएंगे पिता
मुक्त होकर दान से
और बँध जाएँगे पिता
बकाया जीवन अकेले काटने की जद्दोजहद में।

वे उम्मीद करेंगे पेंशन की, नौकरी के बाद
वे जोड़ेंगे धन, बुढ़ापे को काटने
वे मान लेंगे कि उन्हें नहीं मिला कोई "लाभ" जवानी को जलाने का
पुत्रियों को क़ाबिल बनाने का
पुत्रियाँ, जिनसे जुड़ा था अब तक नाम पिता का,
पहचान पिता की,
वे चंद रस्मों के बाद ही अस्तित्व की नई नींव पर खड़ी होंगी
पाकर पहचान पति की

और पिता?

वे बिताएंगे जीवन राह देख-देख
दिन गिनेंगे उंगलियों पर
जिन पुत्रियों को पोषने में जीवन ख़र्च किया
उनके विरह में धुंधलाएगी नज़र
वे उढेल देंगे मोह का घड़ा नाती-नातिनों पर
जिसे भरेंगे प्रतिवर्ष
पुत्रियों के जाने से लेकर पुत्रियों के आने तक।
वे नहीं जता सकते उतना ही अधिकार
अपनी पुत्री के पुत्र पर
जितना तय कर दिया गया है पुत्रों के पुत्र के लिए
वे बस इस संतोष से मृत्यु का आलिंगन करेंगे
कि पुत्री के 'पुत्र' द्वारा ही सही
उनका वंश और उनका अंश दोनों ही
उनके बाद भी जीवित रहें,
क्योंकि वे स्वयं नहीं बन सके पुत्र के पिता।