वैशाख / ऋतु-प्रिया / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
धन्यमास वैशाख, शाख चढ़ि
कोकिल कुहुकि सुनाबय
नखशिख लाल शिरीष कुसुम
लग मधुकर गुनगुन गाबय
जड़ि सँ लय फुनगी धरि फलकल
फूलेँ फुलि फुलबाड़ी
फनफन फनकय पाबि प्रकृति सँ
ई बहुरंगी साड़ी
भेल तामसेँ ताम सनक मुँह
लाल जनिक से दिनकर
उगितहिँ तपबथि सकल चराचर
जलचर, थलचर, नभचर,
सकल वियोगिनि श्री घनश्यामक
तपल वियोगक तापेँ
मनमोहन माधव बनि गेला
तोरे तापक पापेँ
बालारुण धरि ताप - ग्रस्त छथि
आनक कहब कथा की
ई अनन्त आकाश सुनाबौ
अपना मनक व्यथा की
मधुक अनुज, बनि जेठक सटिया
डाहल लाखक लाख
तपल - तपन - भय ग्रीष्म बेचारा
सहजहिं मानय धाख
असल मास वैशाख जनिक
नन्दन छथि आइ अगन्न
जनिकर पौरुष देखि मुदा
कनइत छथि लोक हकन्न
रविक राजधानी परिवर्त्तन
जनिका भय सँ भेल
उठि पटना मानू गर्मी मे
चटपट राँची गेल
छथि चण्डांशु चलल उत्तर दिस
लय कैलाशक आश
जीवन लय गंगाजल - सेवन-
पर जनिका विश्वास
कैलाशो मे किन्तु ताप सँ
नीलकण्ठ बेहोश
अनुखन मस्तक पर जलधारेँ
बाँचक जनिक भरोस
हरिअर मृदु बेलपात अशन-
आसन जनिकर अछि भेल
तेसर आँखिक तेज अंश से
शिव हिनके दय देल
कोमल हृदय रसाल, जनिक
संयोगेँ भेल कठोर
नाङटि धरती, हलफ सुखायल
रहि - रहि चाटथि ठोर
नीमक आँखि हुलासेँ आन्हर
फूले मातलि डारि
साँझे बैसि पराती गाबथि
जन बैसक्खा डारि
सकल नदी कृश-काय बनल अछि
जनु लंका मे सीता
सुरसरि धार सहित बुझि पड़इछ
उज्जर दप - दप फीता
पुण्य मास तैयो कहबइ छथि
से धरि नहि अन्याय
कारण, हिनके कोरा मे
अवतरली सीता माय
एही गुण सँ दोष सकल
हिनकर मानक थिक क्षम्य
शास्त्र पुराणो कहय-मास
वैशाख थिकाह प्रणम्य