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वैसे ही चलना दूभर था अन्धियारे में / मुकुट बिहारी सरोज
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वैसे ही चलना दूभर था अन्धियारे में,
तुमने और घुमाव ला दिया गलियारे में ।
तुम बजाय इसके कि दृष्टि को पाल - पोसकर
किसी योग्य सपने के साथ सगाई करते,
वह क्या किया कि उन हाथों पर गाज गिरा दी,
जो कि कभी जीवन की फटी बिवाई भरते ।
वैसे ही ईमान बहुत शक्की-मिज़ाज थे,
तुमने और तनाव ला दिया गलियारे में ।
कुछ ऐसा छोटा कर डाला संयम का मन,
मूर्ति बुलाती है, जाता ही नहीं पुजारी,
मन्दिर से सूनापन जो बातें कहता था,
आज हुआ मालूम कि वह थी बात तुम्हारी ।
वैसे ही सामने दीपक के खड़ी थी आँधी,
तुमने और दबाव ला दिया गलियारे में ।