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वो आग फेंक गए तुम मकान पर मेरे / सुल्तान अहमद
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वो आग फेंक गए तुम मकान पर मेरे,
अभी तलक है धुआँ आस्मान पर मेरे।
वो गमगुसार थे, रखते रहे मुसल्सल जो,
नए पहाड़ थके-से जहान पर मेरे।
मेरी उड़ान पे पिंजरे में है मलाल उसको,
बुरी नज़र न करो मेह्रबान पर मेरे।
बना-बनाके रखे जा रहा हूँ उनके लिए,
करेंगे नाज़ जो तीरोकमान पर मेरे।
कभी हुआ जो मुकम्मल न जाने क्या होगा,
उठा है शोर अधूरे बयान पर मेरे।