उसने फिर, फिर लिखा
अपनी बदली हुई ज़बान में
इस बार
वो आना चाहती है पूरी शिद्दत से
और तब
जब हमारे मीलों फैले दरख़्तों को एक नई ज़मीन मिले
और हम कुछ न बोलें
जब हमारी बस्तियों को नई शक़्ल मिले
और हमें मंज़ूर हो
जब हमारे बचपन की ख़ूबसूरत स्मृतियाँ गहरी नींद और
मीठे सपने लें, एक नई पैमाइश हो
हम नई सुबह की किरणें देखें
ख़ामोशी से पलकें मून्दे हम मन्द-मन्द मुस्काएँ ।