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वो कहाँ चश्मे-तर में रहते हैं / शीन काफ़ निज़ाम
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वो कहाँ चश्मे-तर में रहते हैं
ख़्वाब ख़ुशबू के घर में रहते हैं
शहर का हाल जा के उनसे पूछ
हम तो अक्सर सफ़र में रहते हैं
मौसमों के मकान सूने हैं
लोग दीवारो-दर में रहते हैं
अक्स हैं उनके आस्मानों पर
चाँद तारे तो घर में रहते हैं
हमने देखा है दोस्तों को ‘निज़ाम’
दुश्मनों के असर में रहते हैं