भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो काशी को क्योटो बनाएँगे कैसे / आलोक यादव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो काशी को क्योटो बनाएँगे कैसे
स्वभावों का अन्तर मिटाएँगे कैसे

जहाँ के निवासी हों तम के उपासक
दिये उस जगह वो जलाएँगे कैसे

जड़ें चाहतीं हैं ठहरने को मिट्टी
हथेली पे सरसों उगाएँगे कैसे

हो विधि-भंजना जिनकी आदत में शामिल
सदाचार उनको सिखाएँगे कैसे

अगर आँख वाले भी मूँदे हों आँखें
उन्हें आप दर्पण दिखाएँगे कैसे

जो फूलों की रक्षा का दायित्व लेंगे
वो काँटों से दामन बचाएँगे कैसे

ग़ज़ल का हुनर जो न 'आलोक' सीखा
तो गागर में सागर समाएँगे कैसे