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वो गीत बज रहा है / ज्योत्स्ना मिश्रा
Kavita Kosh से
कैसे ठहरी रह जाती हैं तस्वीरें
भयावह तूफानों के बीच
जैसे हाथों में कोई पल
थरथराये तो
मगर गिर न पाए
कुछ चीज़ें और लम्हें
आदि काल के होते हैं
और अनंत के भी
जीवन बहता है
गोल घेरों में
इसके भंवर में यादें डूबती उतराती
समय के सिरे जलते हैं
अनायास भकभका कर
भीगी हुई बाती
चरचराती हुई लौ के बीच
किसी खुशबू की तरफ मन पलटता है
कहीं से लौट आता है
मौसम के हाथ में कुदाली है
ये प्रेम की आसमानी जड़ें काटता है
पहलू बदल जातीं हैं बेचैनियाँ
किनारों पर आकर नावें उलट जातीं हैं।
न जाने किस बेकरारी में,
माँझियों के गले रुंध जाते हैं
खिड़कियाँ बंद हैं, रास्ते संकरे
तुम्हारी गाड़ी में वह गीत
अब भी बज रहा है क्या?