भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वो चाँदनी है, धूप है या आफ़ताब है / ज्ञान प्रकाश विवेक
Kavita Kosh से
वो चाँदनी है धूप है या आफ़ताब है
जो भी है आसमान की आँखों का ख़्वाब है
मेरे मकाँ की छत से टपकती है चाँदनी
ये रोशनी का जश्न बड़ा लाजवाब है
उसमें उदासियों की है ख़ुश्बू अभी तलक
यादों की पोटली में जो सूखा गुलाब है
माना कि तेज़ धूप है नंगे हैं तेरे पाँव
साये की भीख माँगना फिर भी ख़राब है
शैतान आँधियों ने उड़ाया है फाड़कर
पतझड़ भी जैसे पत्तों की बिखरी किताब है
बिटिया ने एक जुगनू पकड़ कर कहा मुझे
पापा, हमारे हाथ में इक माहताब है