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वो चाँदनी है, धूप है या आफ़ताब है / ज्ञान प्रकाश विवेक

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वो चाँदनी है धूप है या आफ़ताब है
जो भी है आसमान की आँखों का ख़्वाब है

मेरे मकाँ की छत से टपकती है चाँदनी
ये रोशनी का जश्न बड़ा लाजवाब है

उसमें उदासियों की है ख़ुश्बू अभी तलक
यादों की पोटली में जो सूखा गुलाब है

माना कि तेज़ धूप है नंगे हैं तेरे पाँव
साये की भीख माँगना फिर भी ख़राब है

शैतान आँधियों ने उड़ाया है फाड़कर
पतझड़ भी जैसे पत्तों की बिखरी किताब है

बिटिया ने एक जुगनू पकड़ कर कहा मुझे
पापा, हमारे हाथ में इक माहताब है