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वो चाँद भी लो हँस पड़ा / आलोक यादव

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वो चाँद भी लो हँस पड़ा
धवल हुई निशा-निशा

हवा में घुल रही हँसी
हँसा गगन, हँसी धरा

खिले सुमन, खिला चमन
महक - महक उठी हवा

सुराहियाँ छलक उठीं
नयन जो हँस दिए ज़रा

हँसी तुम्हारी देख कर
बिहँस उठी दिशा-दिशा

पुकारता है कौन ये
इधर तो आ, इधर तो आ

वो पत्र अब भी पास है
मुड़ा- तुड़ा, कटा - फटा

भुला दिया है प्यार में
सुना-गुना, लिखा-पढ़ा

न फ़ासला था फ़ासला
वो जब हमारे साथ था