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वो चाँद है जलवे जो दिखाता है बार-बार / डी .एम. मिश्र
Kavita Kosh से
वो चांद है जलवे जो दिखाता है बार बार
सांचे में ढला हुस्न लुभाता है बार बार
माना कि हुस्न के नहीं है आंख , नाक, कान
बोले नहीं वो फिर भी बुलाता है बार बार
वो कौन है वर्षों से जिसकी है मुझे तलाश
मुझको जो ऊँगलियों पे नचाता है बार बार
अपने ज़मीर पे मुझे रहता है ख़ूब नाज़
मुझको जो गुनाहों से बचाता है बार बार
होगा वो ख़ुदा आपका , मेरा तो है जुनून
तक़दीर की बिगड़ी जो बनाता है बार बार
अर्ज़ी मेरी मंजूर कभी कीजिए जनाब
दिले बेक़रार तुझको बुलाता है बार बार