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वो जब ये कहते हैं तुझ से ख़ता ज़रूर हुई / हसरत मोहानी

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वो जब ये कहते हैं तुझ से ख़ता ज़रूर हुई
मैं बे-क़सूर भी कह दूँ कि हाँ ज़रूर हुई

नज़र को ताबे-तमाशाए-हुस्ने यार<ref >प्रिय-दर्शन की शक्ति</ref> कहाँ
ये इस ग़रीब को तम्बीहे-बेक़सूर<ref >बेक़सूर डाँट</ref> हुई

तुफ़ैले-इश्क<ref >प्रेम का फल</ref> है 'हसरत' ये सब मेरे नज़दीक
तेरे कमाल की शोहरत जो दूर-दूर हुई

शब्दार्थ
<references/>