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वो तुझे रोटी है देता तू उसे भूखा सुलाता / डी. एम. मिश्र
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वो तुझे रोटी है देता तू उसे भूखा सुलाता
अन्नदाता है तेरा वो तू उसे ही भूल जाता
आसमाँ की किस बुलंदी की चला है बात करने
काश तू धरती के इन पुत्रों की पीड़ा जान पाता
तूने बस देखा पहाड़ों को वो कितने सख़्त होते
दिल में जो बहता है दरिया, पर कहाँ वो देख पाता
दिल में क्या अरमाँ हैं उसके आपको मालूम भी है
जंगलों को काटकर वो रास्ता कैसे बनाता
हल, कुदालें, फावड़े, खुरपे यही सहचर हैं उसके
वह इन्हीं के साथ रमता, वह इन्हीं के गीत गाता
भूख से बेहाल बच्चे प्रश्न बनकर घेर लेते
चैन सारा छीन लेते खेत से जब घर वो आता
आँसुओं की इस नदी में मोतियों का थाल लेकर
रोशनी की झालरों में कौन है जो टिमटिमाता