भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वो दस मिनट / राजेश अरोड़ा
Kavita Kosh से
मैंने माँगे थे कभी तुमसे
दस मिनट उधार
तुमने दिये भी थे
याद है अब भी मुझे
बहुत पहले तुम्हारे दिये
वह दस मिनट
तब से आज तक
गुजर गया है
बहुत सारा समय
कई रातें, दिन महीने और वर्ष
आज अचानक तुम फिर मिल गई
अनायास ही कर बैठी
तकादा
उन दस मिनटों का
जो दिये थे तुमने
वर्षो पहले।
अवाक खड़ा मैं
सोच रहा हूँ
कैसे होऊँ गा मैं
कर्ज मुक्त
तुम्हारे दिये
उन दस मिनटों से।