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वो दिन / जया झा
Kavita Kosh से
देखा हमें बेरुखी से कई चैनल बदलते हुए
ठंडी साँस ले कर उन्होंने कहा,
“रविवार की एक फ़िल्म के लिए मचलने वाले,
हाय, वो सीधे दिन गए कहाँ।”
उन्हें जब देखते थे उस फ़िल्म से अकेले चिपके
अपने दिन याद करते थे उनके बुजुर्ग भी
वो बड़ा सा रेडियो, जिसके चारो ओर
पूरे गाँव की भीड़ लगती थी।
और उस रेडियो को भी मिली थी गालियाँ
कि कहाँ पहले लोग यों चिपके रहते थे
क्या दिन थे वो जब शामों में
सब मिलकर बस बातें करते थे।