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वो दिल की बात को होंठों पे भी लाने से डरते हैं / पवनेन्द्र पवन
Kavita Kosh से
वो दिल की बात को होंठों पे भी लाने से डरते हैं
यहाँ अब लोग खुलकर सामने आने से डरते हैं
तुम्हारे मरहमों ने हैं दिए छाले हमें इतने
हम ऐ चारागरो ! अब घाव दिखलाने से डरते हैं
ज़रा-सा होश आने पर तड़पते हैं अब ऐसे हम
कि फिर बेहोश होकर होश में आने से डरते हैं
कोई छिप कर न कर दे वार उनपर बस इसी डर से
यहाँ अब लोग सजदे में भी झुक जाने से डरते हैं
न मिल जाए महारत की सज़ा कोई फिर इनको भी
जवाँ झोंपड़ के अब एकलव्य हो जाने से डरते हैं