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वो नज़रों से मेरी नज़र काटता है / जतिन्दर परवाज़
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वो नज़रों से मेरी नज़र काटता है
मुहब्बत का पहला असर काटता है
मुझे घर में भी चैन पड़ता नही था
सफ़र में हूँ अब तो सफर काटता है
ये माँ की दुआएं हिफाज़त करेंगी
ये ताबीज़ सब की नज़र काटता है
तुम्हारी जफ़ा पर मैं ग़ज़लें कहूंगा
सुना है हुनर को हुनर काटता है
ये फिरका-परसती ये नफ़रत की आंधी
पड़ोसी, पड़ोसी का सर काटता है