भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वो नज़र में नज़ारा नहीं है / द्विजेन्द्र 'द्विज'
Kavita Kosh से
वो नज़र में नज़ारा नहीं है
और कोई तमन्ना नहीं है
बात कहता है अपनी वो लेकिन
उसमें सुनने का माद्दा नहीं है
सच बयाँ तुम करोगे भला क्या
तुमने कुछ भी तो देखा नहीं है
ज़िन्दगी है सफ़र धूप का भी
बरगदों का ही साया नहीं है
शेर कहता हूँ वरना समन्दर
क़ूज़े मे यूँ सिमटता नहीं है
नाख़ुदाओं की है मेहरबानी
कश्तियों को किनारा नहीं है