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वो बात कर रहा था बहुत शौक़ से / शमशाद इलाही अंसारी
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वो बात कर रहा था बहुत शौक से,
बात कहाँ रुक गयी, पता न चला
मैं गुमाँ गुज़ीर था कि वो दोस्त है,
जुदा राहें कब हुईं, पता न चला
चलता रहा उस सिम्त मैं रफ़्ता-रफ़्ता,
मंजिलें क्यों दूर हुई, पता न चला
एक पर्दा उठा फ़िर हज़ार पर्दे गिरे,
वो कब बेपर्दा हुआ, पता न चला
साँस टूटी आस छूटी था सफ़र इतना तवील,
वो पास ही था दिल के करीब, पता न चला
बहते बहते दर्द ज़ख्मों के मुँह तक आ गया,
जीने मरने का फ़र्क क्या है, पता न चला
वो नूर था, वो हुश्न था, या "शम्स" था
तारीकियाँ क्यों गिर गईं, पता न चला