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वो बेवफ़ा ही सही / आत्म-रति तेरे लिये / रामस्वरूप ‘सिन्दूर’

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वो बेवफ़ा ही सही, ग़मगुसार भी तो है!
क़रार भी उसे, बेक़रार भी तो है!

मुझे सता के उसे चैन न आया होगा,
वो दिल फ़रेब तो है, दिलफ़िगार भी तो है!

किसी ने बादए उल्फ़त से, तो कर ली तौबा,
नशे को मात करे, वो ख़ुमार भी तो है!

मैं तश्नालब हूँ इस शहर में हकीक़त है मगर,
य’ कोहसार, कहीं आबशार भी तो है!

जहाँ में रह गया न उसका कोई नामो-निशाँ,
कि उसकी याद ही अब, यादगार भी तो है!

उसे कभी तो य’ ‘सिन्दूर’ याद आयेगा,
वो बेमेहर है मगर, जाँनिसार भी तो है!