वो मेरी चीन-ए-जबीं से ग़मे-पिनहां समझा / ग़ालिब
वो मेरी चीन-ए-जबीं<ref>माथे कि शिकन</ref> से ग़मे-पिनहां<ref>भीतरी ग़म</ref> समझा
राज़-ए-मकतूब<ref>पत्र का रहस्य</ref> ब बे-रबती-ए-उनवां<ref>शीर्षक की असंगति</ref> समझा
यक अलिफ़<ref>उर्दू की वर्णमाला का पहला अक्षर</ref> बेश<ref>अधिक</ref> नहीं सैक़ल-ए-आईना<ref>आईने की क़लई</ref> हनूज़<ref>अभी</ref>
चाक करता हूं मैं जब से कि गिरेबां समझा
शरह<ref>खुलासा</ref>-ए-असबाब-ए-गिरफ़तारी-ए-ख़ातिर<ref>पकड़े जाने के कारण</ref> मत पूछ
इस क़दर तंग हुआ दिल कि मैं ज़िन्दां<ref>कैदखाना</ref> समझा
बद-गुमानी<ref>शक करना</ref> ने न चाहा उसे सरगरम-ए-ख़िराम<ref>घूमने की तीव्र इच्छा</ref>
रुख़ पे हर क़तरा अ़रक़<ref>पसीना</ref> दीदा-ए-हैरां समझा
अ़जज़<ref>कमजोरी</ref> से अपने यह जाना कि वह बद-ख़ू<ref>गुस्से वाला</ref> होगा
नब्ज़-ए-ख़़स<ref>भूसे की नब्ज़</ref> से तपिश-ए-शोला-ए-सोज़ां<ref>जलती हुई आग की तपिश</ref> समझा
सफ़र-ए-इश्क़ में की ज़ोफ़<ref>कमजोरी</ref> ने राहत-तलबी
हर क़दम साए को मैं अपने शबिस्तां<ref>सोने का कमरा</ref> समझा
था गुरेज़ां<ref>भागना</ref> मिज़गां<ref>पलकें</ref>-हाए-यार से दिल ता-दम-ए-मर्ग<ref>आखिरी सांस तक</ref>
दफ़अ-ए-पैकान-ए-क़ज़ा<ref>मोत के तीर का रस्ता मोड़ना</ref> उस क़दर आसां समझा
दिल दिया जान के क्यूं उस को वफ़ादार 'असद'
ग़लती की कि जो काफ़िर को मुसलमां समझा