भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो रूए-पुरइताब दिखा कर चले गये / रतन पंडोरवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो रूए-पुरइताब दिखा कर चले गये
यानी जिगर में आग लगा कर चले गये

नाकामियां तो शौक़-शहादत की देखना
खंज़र ब-कफ़ वो सामने आ कर चले गये

सर भी हम-सफीर जो मेरे क़फ़स के पास
इक दिल-ख़राश नग़मा सुना कर चले गये

देखे कोई तकल्लुम-ए-ख़ामोश आप का
अफसानए-निगाह सुना कर चले गये

अच्छा करम हुआ ये मिरे हाल पर 'रतन'
आये भी वो तो होश उड़ा कर चले गये।