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वो रूखे-शादाब है और कुछ नहीं / रमेश 'कँवल'
Kavita Kosh से
वो रूख़-ए-शादाब है और कुछ नहीं
ये दिले-बेताब है और कुछ नहीं
गौहरे-नायाब1 है और कुछ नहीं
ज़िन्दगी इक ख़्वाब है और कुछ नहीं
हर वरक़2 में क़ैद हैं रानाइयां3
मुज़्तरिब4 इकबाब5 है और कुछ नहीं
मछलियों पर खिलखिलाती चांदनी
हमनवां6 तालाब है और कुछ नहीं
जिस्म की हर शाख पर अठखेलियां
जुर्रते-महताब7 है और कुछ नहीं
महफ़िल-ए –रूख़सारो-लब8 में दिलरूबा
बस मेरा आदाब है और कुछ नहीं
शबनमी चादर लपेटे मौज में
इक गुले-शादाब9 है और कुछ नहीं
तेरे मिलने का हसीं, मंज़र 'कंवल’
सुबह का इक ख़्वाब है और कुछ नहीं
1. दुर्लभमोती 2. पन्ना-पृष्ट 3. सुन्दरता 4. बेचैन, व्याकुल
5. अध्याय 6. सहमत 7. चन्द्रमाकीधृष्टता
8. गालोंऔरहोंटोंकीसभा 9. प्रफुल्लित पुष्प