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वो सपना, जिस की हलकों मे, बहुत आराम आता है / आनंद खत्री

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वो सपना, जिस की हलकों मे, बहुत आराम आता है
छलक कर ओंठ से, नगमों का बन, पैगाम आता है

हमें लगता नहीं था, दिल कभी पंचर भी होगा पर
मगर अफ़सोस की, इस बात का इलजाम आता है

हमारी हर खता भूली, इनायत राज़दारी की
शहर के कुछ शरीफों में, हमारा नाम आता है

शराफत है बड़ी इक चीज़, वाइज़ ने सिखाया था
मगर उम्र-ए-बगावत में, कहाँ सब काम आता है

सुनो अब सोचना कुछ नहीं, बाकी रहा है पर
कलपती चाह को, तुम से सटा, आराम आता है

बहुत छिपते-छिपाते, चल रहा है, सब यहाँ अबतक
नतीजा है, हमारे नाम में, बेनाम आता है