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वो सितारे भी खिलौनों की तरह से टूट सकते / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
वो सितारे भी खिलौनों की तरह से टूट सकते
बॉसुरी से भी बग़ावत के नये स्वर फूट सकते
वो भले सोने की हो, चाँदी की या, लोहे की हो
गर इरादे हों अटल तो बेड़ियों से छूट सकते
उन लुटेरों को कहाँ बन्दूक़,गोली की ज़रूरत
दिन दहाड़े वो तो डोरे डालकर भी लूट सकते
भय जहाँ होगा वहाँ भगवान हो सकता है कैसे
भावना में शिव बसा हो तो गरल भी घूट सकते
फिर घनेरी रात मुस्कायेगी फिर हम तुम मिलंेगे
कब तलक ज़र्रे ज़मी के चाँदनी से रूठ सकते
तुम हमारे घर में रह लो साथ भी कुछ दूर चल लो
हाथ मत थामो हमारा हाथ कल केा छूट सकते