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व्यग्रता से नाश होता है सकल विश्वास का / मनोज अहसास
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व्यग्रता से नाश होता है सकल विश्वास का
उष्ण में ज्यों सूख जाये फल कोई मधुमास का
आज में जीने की आदत यूँ तो अच्छी है मगर
होश पर भारी रहा है फल सदा आभास का
मुझको आंखों से बहाकर हो गया ओझल कोई
दुनिया को अवसर मिला है फिर मेरे परिहास का
होश में बेचैनियां मदहोश हो जाने में डर
कशमकश के मोड़ पर है रास्ता मेरी प्यास का
आयु का पहिया निरंतर घटती जाती राह पर
और नजर में घूमता है चेहरा धुंधली आस का