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व्यस्तता (हिन्दी) / सुमन पोखरेल

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इतना भी व्यस्त न रहूँ,
कि मुझ ही को देखकर मुस्कुरा रहे,
अपने ही आँगन के फूल की ख़ुशबू को पहचान न सकूँ ।

सृष्टि की सारी ख़ुशियों को,
अपने बीच में उड़ेलकर,आनन्द ले रहे बच्चों के
खेल देखने की फुरसत निकाल न सकूँ ।

प्रेम को अपने आगोश मे ले के चल रही हवाओं का स्पर्श
जीवन के स्वर में गा रही चिडियों की चहचहाहट ,
नीचे गिरते हुए भी नाच रहे झरनों की उमंग,
अँधियारे को झाँसा देकर मस्ती मे घूम रहे जुगनुओं की चमक
कुछ समझने की फुरसत न हो ।

कब तक जल्दबाज़ी के धकापेली में ही बहता रहूँ ?
उलझनों के भँवर में ही चक्कर लगाता रहूँ ?
जीवन टूट कर उठी हुई ऊँचाई की ओर भागता रहूँ ?
जिन्दगी के उस छोर तक पहुँचते - पहुँचते
अपना ही चेहरा देखने का वक्त निकाल न पाऊँ,
और एक टुकड़ा समय हाथ में आते-आते,
आइने में ख़ुद को देखने पे दिखनेवाले प्रेयसी के चेहरे से
ओज, माधुर्य और यौवन भाग चुका हो । ।

सर पे रिक्तता का बोझ ढोकर
युगों बूढ़े इस समय के भगाने पे
कब तक भागता रहूँ मैं ?

जीवन ढूँढने की अपनी यात्रा में,
चलते रहिए आप लोग ।
मैं,
एक पल यहीं बैठकर
एक निमिष
ज़िन्दगी जी कर आ जाऊँगा।

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(नेपाली से कवि स्वयं द्वारा अनूदित)