भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
व्याकुल हो समुद्र में गिरना / प्रेम प्रगास / धरनीदास
Kavita Kosh से
चौपाई:-
तब पंखी अस कियउ विचारा। हा!हा! मृत्यु भई कर्त्तारा।।
यदि अवसर नहि आन सहाई। विन जग जीवन यादवराई।।
मोंहि अपने जियको न उसासा। कुँअर धरे अहि मम आसा।।
वहुरि विचारि पाँखि अस भाखी। विधि ने पूर्व अवशि रचि राखी।।
अब यहि अवसर मुझे न आना। रक्षक भक्षक श्री भगवाना।।
विश्राम:-
लाखी परी समुद्र मँह, जात बही जलधार।
तेंहि अवसर डेंगा एक, आय तुलान्यो लार।।28।।