शंका समाधान / 4 / भिखारी ठाकुर
वार्तिक
हमारे नाम की किताब से उनको बहुत-सा लाभ है। घर का खर्चा चलता है। साथे-साथ नाम होता है। कोई कहते हैं कि ये तो बड़े भारी विद्वान हो गये; क्योंकि भिखारी को हटा दिया। इतना लाभ होने पर मेरी-बुराई करते हैं। कोई-कोई सज्जन कह भी देते हैं—ओ भाई, ऐसा काम मत करो, किसी की शिकायत करना अच्छी बात नहीं है, तदेव' वह लोग नहीं मानते हैं, जैसे-
सवैया
अन्धहि काहि दिये अरसि, बहिराहि कहाँ रस राग के ताने
भेड़िहि काहि दिये बुकवा, हरवाह जवाहिर का पहिचाने।
आदि के स्वाद कहाँ कपि के उर, नीच कहाँ उपकारहिं माने।
हिजराहिं कहाँ रति के गति जानत आखर के गति का खर जाने।
कवित्त
गंग के न गोविन्द के न गौरी गनेशहूँ के विप्र गीत ना त के न भिक्षु फकीर के.
काहु के ना संगि अति रंग बहिन भगिन के जिनके अति खोंट खोटे खैहें यमवीर के.
गौआल कवि कहै निज नारी के खसम माने धरम के परम जाने पातकी शरीर को।
नमक हराम बद काम करे ताजे-ताजे बाते-बाते नर होत गुरु के न परी के.