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शकुन्तला लेली / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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फैललोॅ छै चारोॅ तरफें
लोरोॅ के समुद्र
यहाँ-वहाँ हर जग्घा में
आखर-आखर शब्दोॅ-शब्दोॅ में
एक बहुत बडोॅ हृदय छूवेॅ वाला शोकगीत
प्रिया जीवनसाथी शंकुतला रोॅ वियोगोॅ में
मा निशाद़, कानलै कवि
आदिकवि बाल्मीकि नांकी
कुन्ती, सीता, याज्ञसेनी, कैकेयी,
‘शकुन्तला’ महाकाव्योॅ में
सगरोॅ फैललोॅ छै कवि के ही तेॅ लोर
नै कानलोॅ छेलै कालिदास रोॅ मेघदूत
नै यक्ष कानलोॅ छेलै, नै तेॅ अज ही।
कानलोॅ छेलै कवि
कानलोॅ छै कवि
अपनोॅ करूणा, आपनोॅ दुख, आपनोॅ दरदोंॅ केॅ लैकेॅ
प्रेम शाश्वत, अमर होय छै
यहेॅ कारण छेकै कवि रोॅ दर्द
सभ्भै रोॅ दर्द होय जाय छै
‘मानस’ में सीता वियोगोॅ में
राम नै, तुलसी ही तेॅ कानलोॅ छै
कविवर मुचकुन्द के वहेॅ करुणा
हर एक समाजिक सरोकारोॅ केॅ
संबंध के सुगंधोॅ संे भरी गेलोॅ छै
आरो, शकुन्तला के सुहाग
जन मन के कवि होयॅ केॅ
अमर होय गेलोॅ छै।