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शक्ति / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

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जिसे है मानवता का ज्ञान,
नहीं पशुता से जिसकी प्रीति;
बिना त्यागे विनयन का पंथ
लोक-नियमन है जिसकी नीति।
क्रोध जिसका है शांति-निकेत,
लोभ जिसका लालसा-विहीन;
मोह जिसका है महिमावान,
काम जिसका अकामनाधीन।
न मद में मादकता का नाम,
न तन में अतन-ताप का लेश;
रूप जिसका है लोक-ललाम,
अवनि-रंजन है जिसका वेश।
न मस्तक पर कलंक का अंक,
न जिसका लहू भरा है हाथ;
बिहरती रहती है सब काल
लोक-लालनता जिसके साथ।
जलद-सम कर जन-जन को सिक्त,
रस बरसती जिसकी अनुरक्ति;
भरा है जिसमें भव का प्यार,
वही है विश्व-विजयिनी शक्ति।