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शक / इरेन्द्र बबुअवा
Kavita Kosh से
किसी को मेरे प्यार पर शक है
शक है मेरी सच्चाई पर
किसी को मेरे मैं पर शक है
शक है
मेरी ख़ामोशी और अकेलेपन पर
किसी को मेरे भूत, वर्तमान, भविष्य पर शक है
शक है किसी को
काँपते हाथों से लिखी गई कविता पर
मैं खड़ा हूँ
कई एक शकों के घेरे में
मुझे इन घेरों पर शक है !