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शताब्दी का सबसे बड़ा जादूगर / कुमार विकल

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नाम तो शायद उसका कुछ और होगा

लेकिन दोस्त प्यार से

या शायद ईर्ष्या से

उसे ‘तरक्की राम ‘कहते हैं


वैसे तो इस तरह के हर नाम का एक इतिहास होता है

लेकिन ‘तरक्की राम’ ने यह नाम

कुछ इन्हीं दिनों कमाया है

और इतिहास की जगह

एक ऐसा अँधेरा जुटाया है

कि हर आदमी को लगता है कि यह नाम असली है.


ख़ैर छोड़िए,नाम में क्या रक्खा है

‘तरक्की राम’ आदमी तो पक्का है.

उसके पास रुतबा है

बंगला है गाड़ी है

गो उसका कहना है

यह सब पापी पेट की लाचारी है.

वह तो बुद्धिजीवी है,सर्वहारा है

गौ—हत्या से लेकर वियतनाम तक के दुखों का मारा है.

क्या हुआ जो उसके पास हर दुनियावी सुविधा है

लेकिन ज़िंदगी तो उसके लिए एक दार्शनिक दुविधा है.

सुख-सुविधाओं और दु:ख-दुविधाओं के बीच—

भटकता ‘तरक्की राम’

सुखी और उदास रहता है.

उदास रहना उसका दर्शन नहीं

सिर्फ़ समकालीन साहित्य-बोध का तकाज़ा है.

इसलिए समकालीन बनने के लिए

पहले वह भीड़ इकठ्ठी करता है

फिर भीड़ में अकेला हो जाता है.

अकेलेपन के संत्रास से बचने के लिए

वह प्रधानमंत्री के पौत्र-जन्म पर कविताएँ लिखता है—

और उसे संत्रास की एक अचूक दवाई मिलती है—

पु र स्का र

जिसके सेवन से वह सिद्ध—पुरुष हो जाता है.

इधर कुछ दिनों से ‘तरक्की राम’ नक्सलपंथी हो गया है

और अख़बारों के दफ़्तरों में खो गया है.

उसने एक बयान में पत्रकारों को बताया है—

‘ मैं चैयरमैन माओ का सच्चा वर्कर हूँ

मेरी ज़िन्दगी हथियार बंद क्रांति को समर्पित है

हालाँकि मेरी अपनी कई ज़िम्मेदारियाँ है

मुझे कई रोग हैं बीमारियाँ है

मुझे लड़के—लड़कियों की शादियाँ करनी हैं

शादियों में गाड़ियाँ देनी हैं

गाड़ियों मेम पेट्रोल भरना है

आप तो जानते हैं आजकल—

पेट्रोल में कितनी मिलावट हो रही है

कामरेड !

मैम ज़िंदगी की लड़ाई में थक गय हूँ

घटिया पेट्रोल से गाड़ी चला कर

मुझे थकावट हो रही है.”


जिस तरह वक़्त के साथ

हर नक्सलपंथी अंडर ग्राऊंड हो जाता है

‘तरक्की राम’ भी अख़बारॊ में बयान देने के बाद

अंडर ग्राउंड हो गया है

शायद अपने बंगले के किसी तहख़ाने में खो गया है


अब तक आप समझ गए होंगे

‘तरक्की राम’

इस शय्ताब्दी का सबसे बड़ा जादूगर है

जो अपने जादू से

बड़े—बड़े करतब दिखा सकता है

मसलन, बवक़्ते ज़रूरत

गधे को बाप

और बाप को गधा बना सकता है.