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शत्रुघ्न स्तुति/ तुलसीदास

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शत्रुघ्न स्तुति
(राग धनाश्री)
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जयति जय शत्रु-केसरी शत्रुहन,
शत्रुतम-तुहिनहर किरणकेतू।
देव-महिदेव-महि-धेनु-सेवक सुजन-
सिद्ध-मुनि-सकल-कल्याण-हेतू।1।

जयति सर्वांगसुन्दर सुमित्रा-सुवन,
 भुवन-विख्यात-भरतानुगामी।
वर्मचर्मासि-धनु-बाण-तूणीर-धर
शत्रु-संकट-समय यत्प्रणामी।2।

जयति लवणाम्बुनिधि-कुंभसंभव महा-
दनुज-दुर्वनदवन, दुरितहारी।
लक्ष्मणानुज, भरत-राम-सीता-चरण-
 रेणु-भूषित-भाल-तिलकधारी।3।

जयति श्रुतिकीर्ति-वल्लभ सुदुर्लभ सुलभ
नमत नर्मद भुक्तिमुक्तिदाता।
दास तुलसी चरण-शरण सीदत विभो,
पाहि दीनार्त्त-संताप-हाता।4।