भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शबनम-आलूद पलक याद आई / नासिर काज़मी
Kavita Kosh से
शबनम-आलूद पलक याद आई
गुले-आरिज़ की झलक याद आई
फिर सुलगने लगे यादों के खण्डर
फिर कोई ताके-खुनक याद आई
कभी जुल्फों की घटा ने घेरा
कभी आंखों की चमक याद आई
फिर किसी ध्यान ने डेरे डाले
कोई आवारा महक याद आई
फिर कोई नग़मा गुलूगीर हुआ
कोई बेनाम कसक याद आई
ज़र्रे फिर माइले-रम हैं 'नासिर'
फिर उन्हें सैरे-फ़लक याद आई।