शब्दयोजना का सच / राम सेंगर
शब्दयोजना ,
रचनाकारी नहीं बिरादर !
सामाजिक धड़कन
जिनमें कुछ नहीं सुनाई दे
गूँगे-बहरे हों ।
तोड़ताड़ जो गढ़े गए हों
भाषिक कुनबों को
उखड़े-ठहरे हों ।
अर्थ न दें
बस, लदे रहें बेसबब कहन पर
रंग जमाकर ।
ऐसे डिक्शन पर
कोई यदि कूदे- इतराए।
खोज नई माने ।
अल्पज्ञों में पुजे
बड़ा भाषाविद कहलाए
जाने-अनजाने ।
काव्यसर्जना के मर्मों से
वह, बस, खेले
क्षति पहुँचाकर ।
शब्दयोजना,
रचनाकारी नहीं बिरादर !