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शब्दों से कभी-कभी काम नहीं चलता / त्रिलोचन
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शब्दों से कभी-कभी काम नहीं चलता
जीवन को देखा है
यहां कुछ और
वहां कुछ और
इसी तरह यहां-वहां
हरदम कुछ और
कोई एक ढंग सदा काम नहीं करता
तुम को भी चाहूं तो
छूकर तरंग
पकड़ रखूं संग
कितने दिन कहां-कहां
रख लूंगा रंग
अपना भी मनचाहा रूप नहीं बनता ।
('ताप के ताये हुए दिन' नामक संग्रह से )