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शब्द की मैं आत्मा हूँ / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
प्राणवत्ता शब्द की बोली
ज़रा मुझको सँभालो
ग्राह-गज का दृश्य
मेरी चेतना में तिर गया।
शब्द की मैं आत्मा हूँ
आत्मा बिन शब्द क्या है?
आत्मामय शब्द, निर्मल
अब्द के विस्तार-सा है
गीत के गोपाल मेरी
इंगुरी इज़्ज़त बचालो
चीर हरणी दृश्य
मेरी चेतना में तिर गया।
एक लम्पट लोभ मेरी
जान के पीछे पड़ा है
सामने व्यापार का
सिद्धहस्त व्यापारी खड़ा है
वेष मायावी न छूले
छन्द में अपने छुपालो
लखन-रेखा दृश्य
मेरी चेतना में तिर गया है।