भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शब्द के संचरण में / शब्द के संचरण में / रामस्वरूप 'सिन्दूर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं अरुण अभियान के अन्तिम चरण में हूँ!
शब्द के कल्पान्त-व्यापी संचरण में हूँ!

सूर्य की शिखरांत यात्रा पर चला हूँ मैं,
एक रक्षा-चक्र में नख-शिख ढला हूँ मैं,
मैं त्रिलोचन-स्वप्नवाही जागरण में हूँ!

शशि-वलय तोड़ा प्रखर गति की चपलता ने,
तृप्ति दे-दी सोम-रस डूबी तरलता ने,
मैं प्रणय से, प्रणव के हस्तान्तरण में हूँ!

राग-रंजित मन धुला आकाश-गंगा में
घुल गया हिमखण्ड-सा संत्रास गंगा में
मैं महासंक्रान्ति-क्षण के सन्तरण में हूँ!

काल कि आद्यन्त गाथा, शून्य गाता है,
प्राण-परिचित नाद मुरली-सी बजाता है,
मैं अनादि-अनन्त लय के व्याकरण में हूँ!

गीत मेरे गूँजते-मिलते ध्रुवान्तों में,
मैं मुखर हूँ,मैं मुखर हूँ, ज्वालमण्डित समासान्तों में,
मैं समूची सृष्टि के रूपान्तरण में हूँ!