भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शब्द / रामलोचन ठाकुर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
हमरा लोकनिक पूर्वज
शब्दकें कहने छला ब्रह्म
ब्रह्म अर्थात् स्रष्टा
ब्रह्म अर्थात् सेतु
ब्रह्म अर्थात आलोक
जानि ने कते तप-साधनाक पश्चात्
भेल होएत शब्दक निर्माण-
कहेन उदात्त हृदय भाव
भरने होएत अर्थ प्राण

हमरा लोकनि
अर्थात् एकैसम शताब्दीक
सभ्य सुशिक्षित मनुक्ख
शब्दकें बना लेने छी अस्त्र
अस्त्र विभाजनक
अस्त्र शोषणक
अस्त्र संहारक
आइ शब्द स्नहे-संवेदना नहि
घृणा-द्वेषक करैत् अछि सृष्टि-संचार

शब्द आइयो अछि
संसद-संविधानमें
बणिकक तिजोरीमे
स्तावक लोकनिक ठोर पर
कलमक नोक पर
शब्द आइयो अछि
मात्र बदलि गेल छैक ओकर अर्थ
तें लगैत अथ्छ अनचिन्हर-अनभोआर
लगैछ भयाओन
लोक, साधारण लोक
आइ शब्दसं डेराइत अछि
दूर पड़ाइत अछि
शब्द साधक लोकनि छथि
निस्पृह, निर्विकार

शब्द आइयो अछि
मुक्तिक हेतु कछमछाइत
आकुल-व्याकुल पएबाक लेल
अपन हेराएल अर्थ
तकैत अछि बाट
कोनो वाल्मीकि विद्यापति कृत्तिवासक

शब्द आइयो अछि
शब्द ब्रह्म थिक
सरिपहुं थिक ब्रह्म शब्द
शब्दे थिक ब्रह्म
शब्द
ब्रह्म