शब्द / शब्द प्रकाश / धरनीदास
धरनी शब्द प्रसंग लगि, जाको जियरा जाग।
सात द्वीप नव खंडमें, ता शिर मोटे भाग॥1॥
ताको शब्द सराहिये, कहै समैया जानि।
धरनी सो पुनि धन्य है, लेत शब्द को मानि॥2॥
धरनी शब्द प्रतीति विनु कैसहुँ कारज नाँहि।
शब्द सीढ़ि विनु को चढै, गगन झरोखा माँहि॥3॥
शब्द शब्द सब कोई कहै, धनी कियो विचार।
जो लागै निज शब्द को, ताको मत्ता अपार॥4॥
शब्द सकल घट उच्चरै, धरनी बहुत प्रकार।
जो लागै निज शब्द को, ताके शब्दहिँ सार॥5॥
शब्दरूपी राम जी, बसैं सकल घट माँहि।
धरनी धिग वहि मानवहिं, शब्द विवेकी नाहि॥6॥
कवित कथा पद ग्रंथ गुन, साखी शब्द अनेक।
धरनी वु घट उच्चरै, हरि-जन-हाथ विवेक॥7॥
धरनी धरिये टेक नहि, करिये शब्द विवेक।
कर्त्ता राम अनेक हैष्र रमता राम सो एक॥8॥
बोलेते अक्षर भया, बोलेते भा शब्द।
धरनी जो नहि बोलता, तो अक्षर ना शब्द॥9॥