भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शब्द / सपन सारन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

“ क्या तुम्हें गोद में ले लूँ —
आत्म-मोही बच्चे की तरह
— झूला झुला दूँ, लोरी सूना दूँ ?

क्या तुम्हें सर पर बिठा दूँ —
घमण्डी प्रेमी की तरह
— दिन का हर मिनट तुम्हारे नाम लिख दूँ ?

के तुम्हें थप्पड़ लगा दूँ
गाली दे दूँ
बाल खींचकर
अन्धेरे कमरे में
महीने भर के लिए तुम्हें
बन्द कर दूँ ? —
— बिना पानी, बिना हवा, बिना बातचीत के ?

और जब तुम ज़ोर-ज़ोर से
चीख़ो
चिल्लाओ
झुलसो
रोओ
तड़पो
सहमो
काँपो
… और हार जाओ
तब बाहर निकाल कर
चाय पे पूछूँ तुमसे
मेरे साथ रहोगे ? ”

— कवि ने कहा शब्द से ।