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शरशय्या / तेसर सर्ग / भाग 18 / बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर'
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तखनहि मचल एतए ई ताल।
नाचि रहल अछि जत बेताल।।109।।
तत्त्व पाँच केर समुचित ज्ञान।
राखि बढ़ए जँ नित विज्ञान।।110।।
पुनि व्यवहारक विधिके जानि।
रहए प्रजा त नहि हो हानि।।111।।
भौतिक दैवी दूनूक लक्ष्य।
प्राणी हित नहि थीक अलक्ष्य।।112।।
रक्षा जगतक मानव हाथ।
उन्नत शिर बा अवनत माथ।।113।।
विधिवर पाओल मनु सन्तान।
अमर बनब नहि देहक मान।।114।।
देहक पतनहि हो नहि नाश।
यदि सुकीर्तिमय होए प्रकाश।।115।।
परवेदनसँ पघिलए चित्त।
दयाभाव थिक मानव बित्त।।116।।