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शरशय्या / तेसर सर्ग / भाग 6 / बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर'
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उत्तर हिनक उचित अधिकारी
सिरजल विधि नहि एक।
एहन न पायब पुनरपि जगमे
यद्यपि लोक अनेक।।21।।
कए अधिकार हमर अन्तस्तल-
पर ई भक्तविशेष।
सीदित कएलन्हि हमर गातकें
सम्बरणक नहि शेष।।22।।
कुरुक्षेत्र शरशय्यापर
छथि ओ शोभित वेश।
शरयन्त्रक जनु राखथि मिथिला
मध्य सुधी आवेश।।23।।
ई अमूल्य कण जाय, रहल अछि
करसँ छुटि भुवनेश!
पछतोने नहि पाएब कहिओ
पुनि भाग्यक अहँ लेश“।।24।।