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शराब में भी तो अब ज़िन्दगी नहीं मिलती / कुमार नयन

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शराब में भी तो अब ज़िन्दगी नहीं मिलती
पियूँ मैं कितनी मगर बेख़ुदी नहीं मिलती।

ग़मों की ज़द में समाया है मेरा दिल शायद
खुशी के जश्न में भी क्यों खुशी नहीं मिलती।

चलो जो करना है बस इन पलों में कर डालें
हमारे जैसों को पूरी सदी नहीं मिलती।

जिगर में पार पहुंचकर जो देख लेती है
हरेक आंख को वो रौशनी नहीं मिलती।

मैं चाहता हूँ कि पी जाऊं अपने ग़म सारे
मगर ख़ुदा की क़सम तिश्नगी नहीं मिलती।

कभी हज़ार मिरी दोस्ती में हो लेकिन
तुम्हारी दुश्मनी में कुछ कमी नहीं मिलती।

ये भूख भी तो है नेमत बड़ी मगर यारो
हरेक शख्स को फ़ाक़ाकशी नहीं मिलती।